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परिचय Defamation Section 356 in BNS
गृह मंत्रालय (MHA) ने भारतीय आपराधिक कानूनों में सुधार हेतु एक समिति का गठन किया था, जिसका उद्देश्य भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बदलाव हेतु प्रस्तावित नए विधेयकों का मसौदा तैयार करना था। यह समिति अपनी रिपोर्ट 27 फरवरी 2022 को प्रस्तुत कर चुकी थी। रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात MHA ने एक कार्यसमूह गठित किया, जिसने नए विधेयकों का प्रारूप तैयार किया। अगस्त 2023 में विधेयकों को संसद की एक विशेष समिति को समीक्षा हेतु भेजा गया और नवंबर 2023 में संसद में रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। अंततः यह विधेयक 25 दिसंबर 2023 को राजपत्र में प्रकाशित किए गए।
तीनों नए कानून 1 जुलाई 2024 से प्रभावी किए जाएंगे, जिनके तहत:
- भारतीय दंड संहिता, 1860
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872
को निरस्त कर नए कानूनों की स्थापना की जाएगी।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS)
BNS भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान लेगा। इसमें कुल 356 धाराएँ हैं, जबकि पूर्ववर्ती IPC में 511 धाराएँ थीं। BNS में:
- 175 धाराओं में संशोधन किया गया है,
- 20 नए अपराध जोड़े गए हैं,
- 19 धाराएँ हटाई गई हैं।
इसमें लिंग न्याय, बाल अधिकार, राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता को ध्यान में रखते हुए बदलाव किए गए हैं। साथ ही, आर्थिक दंड की राशि को भी युक्तिसंगत बनाया गया है।
मानहानि की परिभाषा (Defamation Section 356 in BNS)
भारतीय न्याय संहिता अधिनियम, 2023 द्वारा दंड संहिताओं को संशोधित किया गया, जिसमें “मानहानि” (Defamation) को लेकर विशेष प्रावधान शामिल किए गए हैं। इस कानून में “सामुदायिक सेवा” (Community Service) की अवधारणा को शामिल किया गया है, जिससे अपराधियों को सुधार का अवसर मिल सके।
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की अनुमति के बिना उसके विरुद्ध झूठी सामग्री, शब्द या चित्र प्रकाशित करता है, तो वह मानहानि माना जाएगा। जेल की सजा के स्थान पर सामुदायिक सेवा विकल्प के रूप में दी जा सकती है, जिससे अपराधियों का पुनर्वास संभव हो सके।
धारा 356 – BNS में मानहानि
“कोई व्यक्ति, बोले गए शब्दों, पढ़े जाने हेतु लिखे गए शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व के माध्यम से किसी व्यक्ति के बारे में ऐसा आरोप लगाए या प्रकाशित करे जिससे उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचे – तो उसे मानहानि का दोषी माना जाएगा।”
सजा:
- अधिकतम 2 वर्ष का साधारण कारावास, या
- जुर्माना, या
- दोनों, या
- सामुदायिक सेवा
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित, छापता या बेचता है, तो वही सजा दी जा सकती है।
महत्वपूर्ण निर्णय: Subramanian Swamy बनाम भारत संघ (2016)
धारा 499 और 500 IPC और धारा 199 CrPC की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। याचिका में यह कहा गया कि ‘किसी भी अपमानित व्यक्ति’ को शिकायत करने का अधिकार बहुत व्यापक है और इससे अपील के अधिकार में कटौती होती है। परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रावधानों को संविधान सम्मत घोषित किया।
यदि मानहानि पीड़ित व्यक्ति:
- 18 वर्ष से कम आयु का है,
- पागल, मूर्ख, बीमार या असमर्थ है,
- पर्दानशीं महिला है,
तो उसके स्थान पर अन्य व्यक्ति कोर्ट की अनुमति से शिकायत कर सकते हैं।
मानहानि के आवश्यक तत्व
- किसी व्यक्ति के संबंध में कोई आरोप या कथन करना।
- यह आरोप:
- बोले गए या पढ़े जाने हेतु लिखे शब्दों से हो सकता है,
- संकेत या दृश्य रूप में भी हो सकता है।
- यह आरोप उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाने के आशय से किया गया हो।
प्रकृति: नागरिक और आपराधिक दोनों
- नागरिक कानून के अंतर्गत मानहानि में हर्जाना (डैमेज) दिलाया जा सकता है।
- आपराधिक कानून के अंतर्गत BNS और BNSS में कारावास अथवा जुर्माना संभव है।
BNSS की अनुसूची I के अनुसार, यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, या मंत्री जैसे उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति के विरुद्ध मानहानि का मामला हो, तो सत्र न्यायालय में राज्य के लोक अभियोजक द्वारा लिखित शिकायत के आधार पर मुकदमा दर्ज होगा।
BNS की धारा 222 – BNSS में आपराधिक मानहानि
- आम नागरिक के विरुद्ध मानहानि की शिकायत स्वयं पीड़ित द्वारा की जानी चाहिए।
- उच्च पदस्थ अधिकारियों के मामले में लोक अभियोजक राज्य सरकार की अनुमति से शिकायत कर सकता है।
मानहानि के अपवाद
- सत्य आरोप जो सार्वजनिक हित में हो।
- लोक सेवकों के कार्यों की समीक्षा।
- किसी सार्वजनिक प्रश्न पर राय।
- न्यायालय की कार्यवाही की रिपोर्ट।
- न्यायालय में तय किए गए मामलों की चर्चा।
- सार्वजनिक प्रदर्शन की समीक्षा।
- विधिसम्मत प्राधिकारी द्वारा भलाई के उद्देश्य से आलोचना।
- प्राधिकृत व्यक्ति को की गई शिकायत।
- अपने या किसी अन्य के हित की रक्षा हेतु आलोचना।
- किसी व्यक्ति के हित में दी गई चेतावनी।
मानहानि के प्रकार
1. लिखित मानहानि (Libel)
- स्थायी माध्यम (जैसे: किताब, समाचार पत्र, चित्र) में प्रकाशित झूठे आरोप।
2. मौखिक मानहानि (Slander)
- अस्थायी रूप से फैलने वाले आरोप (जैसे: बातचीत, भाषण आदि)।
प्रमुख निर्णय
1. चमनलाल बनाम पंजाब राज्य (1970)
एक नगर निगम अध्यक्ष ने एक नर्स के खिलाफ मानहानिकारक पत्र लिखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आरोप भले विश्वास में और सार्वजनिक हित में लगाए गए हों, तो अपराध नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा भले विश्वास की पहचान:
- आरोप लगाने की परिस्थितियाँ
- दुर्भावना का अभाव
- आरोप से पूर्व जाँच की गई या नहीं
- सावधानीपूर्वक व्यवहार
- क्या आरोपी ने भले विश्वास से कार्य किया?
2. कंवललाल बनाम पंजाब राज्य (1963)
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 499 के आठवें और नौवें अपवादों की व्याख्या की। कोर्ट ने स्पष्ट किया:
- आठवें अपवाद में आरोप लगाने वाले के पास वैध प्राधिकरण होना चाहिए।
- नौवें अपवाद में वैध प्राधिकरण आवश्यक नहीं, बस साझा हित का संबंध आवश्यक है।
निष्कर्ष
मानहानि एक संवेदनशील अपराध है क्योंकि यह व्यक्ति की प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाता है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) के अधिकार और प्रतिष्ठा की रक्षा के बीच संतुलन बनाने की चुनौती पेश करता है।
धारा 356 BNS इस संतुलन को कानूनी रूप से स्थापित करने का प्रयास करता है। न्यायपालिका और विधि आयोग की भूमिका इस विवादित अपराध को स्पष्ट करने में निर्णायक रही है।
