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Definition of BNS Section 357 in Hindi
असहाय व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने और आपूर्ति करने के अनुबंध का उल्लंघन
जो कोई, किसी ऐसे व्यक्ति की देखभाल करने या उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक वैध अनुबंध से बंधा हुआ है, जो युवावस्था, या मानसिक बीमारी, या किसी बीमारी या शारीरिक कमजोरी के कारण, अपनी स्वयं की देखभाल करने में असहाय या असमर्थ है। सुरक्षा या अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, स्वेच्छा से ऐसा करने से चूक जाता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी जिसे तीन महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना जो पांच हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
BNS Section 357 in English
Whoever, being bound by a lawful contract to attend on or to supply the wants of any person who, by reason of youth, or of mental illness, or of a disease or bodily weakness, is helpless or incapable of providing for his own safety or of supplying his own wants, voluntarily omits so to do, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three months, or with fine which may extend to five thousand rupees, or with both.
BNSS Classification
- Imprisonment for 3 months, or fine of 5,000 rupees, or both.
- Non-cognizable
- Bailable
- Triable by Any Magistrate.
BNS Section 357 in Hindi Explanation
📌 धारा BNS Section 357 in Hindi क्या कहती है?
“असहाय व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने और आपूर्ति करने के अनुबंध का उल्लंघन”
यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे असहाय व्यक्ति की देखभाल करने या उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वैध अनुबंध (Lawful Contract) से बंधा है — और वह व्यक्ति कमी उम्र, मानसिक बीमारी, बीमारी या शारीरिक कमजोरी के कारण खुद की देखभाल करने में असमर्थ है — फिर भी वह जानबूझकर अपनी जिम्मेदारी निभाने से चूकता है, तो यह अपराध बनता है।
उदाहरण के तौर पर, अगर एक वृद्धाश्रम संचालक ने बुजुर्गों की देखभाल के लिए कानूनी अनुबंध किया है और बाद में वह उनकी देखभाल नहीं करता, तो यह धारा 357 के अंतर्गत आपराधिक कृत्य होगा।
⚖️ मुख्य बिंदु (Main Points of BNS Section 357 in Hindi)
तत्व | विवरण |
---|---|
🔹 अपराध | वैध अनुबंध के तहत किसी असहाय व्यक्ति की देखभाल से जानबूझकर चूक |
🔹 पीड़ित | वह व्यक्ति जो खुद की देखभाल करने में असमर्थ है (उम्र, बीमारी, कमजोरी, मानसिक स्थिति आदि के कारण) |
🔹 सजा | 3 महीने तक की कैद, या ₹5000 तक का जुर्माना, या दोनों |
🔹 प्रकृति | अदालती प्रक्रिया: जमानती, गैर-संज्ञेय (Non-cognizable), किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |
🚔 पुलिस इस धारा का उपयोग कैसे करती है?
- यह धारा गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) है, मतलब पुलिस बिना कोर्ट की अनुमति के FIR दर्ज नहीं कर सकती।
- ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति (या उनका अभिभावक) मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद दायर करता है।
- यदि मजिस्ट्रेट संज्ञान ले लेता है, तो फिर पुलिस जांच प्रारंभ कर सकती है।
⚠️ कई बार पारिवारिक झगड़ों या वृद्धजनों की संपत्ति से जुड़े मामलों में इस धारा का दुरुपयोग भी देखा गया है।
🛡️ खुद को इस धारा से कैसे बचाएं? (How to Protect Yourself)
- ✅ अनुबंध की शर्तों का पालन करें — यदि आपने देखभाल या सहायता का वादा किया है, तो उसे समय पर निभाएं।
- 📑 लिखित में साक्ष्य रखें — देखभाल, खर्च, मेडिकल सहायता आदि का पूरा रिकॉर्ड रखें।
- 📽️ CCTV या गवाहों का सहारा लें — यदि आप पर आरोप लगाया जाता है, तो ये सबूत आपकी सुरक्षा कर सकते हैं।
- 🧾 लिखित में सहमति और सेवा की सीमा तय करें — अगर आप किसी का ध्यान रख रहे हैं, तो स्पष्टता ज़रूरी है।
👨⚖️ एक अच्छे वकील की भूमिका और अधिवक्ता सुदीर राव की विशेषज्ञ राय
ऐसे संवेदनशील मामलों में एक अनुभवी वकील की मदद अत्यंत आवश्यक होती है। सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता श्री सुदीर राव का कहना है कि:
“BNS की धारा 357 का सही कानूनी आकलन और उसके पीछे की मंशा को समझे बिना कोर्ट में बचाव करना मुश्किल होता है।”
अधिवक्ता सुदीर राव के अनुसार:
- अगर आप गलत तरीके से फंसाए गए हैं, तो कोर्ट में यह साबित करना जरूरी है कि आपने देखभाल नहीं छोड़ी बल्कि वास्तविक कारणों से बाधा आई थी।
- वे सलाह देते हैं कि अनुबंध की प्रत्येक शर्त को न्यायालय में पेश करने के लिए पूर्ण दस्तावेज़ तैयार किए जाएं।
- श्री राव गवाहों की सूची और तटस्थ रिपोर्ट (जैसे डॉक्टर का प्रमाणपत्र या वरिष्ठ नागरिक आयोग की रिपोर्ट) को भी बचाव में बेहद कारगर मानते हैं।
📚 निष्कर्ष (Conclusion)
BNS धारा 357 एक मानवीय कानून है जो असहाय लोगों की रक्षा के लिए बनाया गया है, लेकिन इसका दुरुपयोग भी संभव है। यदि आप किसी पर देखभाल की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं — तो यह जरूरी है कि आप हर बात को प्रमाणित रूप से निभाएं।
और यदि कोई झूठा आरोप लगता है, तो अधिवक्ता सुदीर राव जैसे अनुभवी और संवेदनशील वकील से सलाह लेना ही सबसे बुद्धिमानी होगी।
